
चंपा
भावना मयूर पुरोहित
हैदराबाद
“चंपा तुज में तीन गुण,
रंग रूप और वास, अवगुण तुझमें एक ही
भंवर न आए पास।”
यह प्रसिद्ध लोकोक्ति चंपा के ,
बारे में कुछ बातें,
समझाती है।
चंपा एक सुगंधित
फूल है।
चंपा का वृक्ष सदा
हरा-भरा रहता है।
चंपा के रंगों विभिन्न होते हैं। जैसे कि
सफेद, पीला, केसरी, गुलाबी और हरा। महाराष्ट्र में हरे चंपा को खडचंपा कहते है। पीले चंपा को सोनचंपा कहते है। गुलाबी चंपा को नाग चंपा कहते है।
चंपा की पांच तरह की जातीयां
होती है। सोनचंपा, नागचंपा, कनक चंपा, सुल्तान चंपा और कटहरी चंपा।
कहते हैं कि नाग को चंपा की सुगंध बहुत ही पसंद होती है।
चंपा के फूल को चंपक भी कहा जाता है। चंपा के कई सारे औषधीय
गुण होते हैं। वह एक द्विदलीय पुष्प है। चंपा की प्रकृति उष्ण है। चंपा को पानी में उबालकर पीने से चेहरे पर चंपा जैसी कांति आ
जाती है।
बहुत सारे रोगो जैसे कि सिर दर्द, कानदर्द,आंखों की बिमारीयां, मूत्ररोग,पथरी, बुखार, सुखी खांसी, कोढ़,वर्ण, जख्म
आदि के लिए यह एक दिव्य औषधि है। किंतु चिकित्सक की राय और सूचना का अवश्य पालन करना चाहिए।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में चंपा छठ पर्व मनाया जाता है।यह मागसर शुक्ल छठ के दिन आता है। इस दिन किसान
महादेवजी को बाजरे की रोटी और बैंगन की सब्जी का भोग लगाते हैं। महादेव को केतकी नामका चंपा का फूल नहीं चढाया जाता है। कर्नाटक में महादेव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जो सुब्रमण्यम स्वामी के नाम से जाने जाते हैं।
विष्णु भगवान को चंपा का फूल चढाया जाता है।
उन्हें चंपा छठ के दिन चंपा के फूलों से शणगार (श्रृंगार) किया जाता है।
भावना मयूर पुरोहित
हैदराबाद