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आओ मिलकर नेह का दीप जलाएं

भावना मयूर पुरोहित व्दारा लिखित कविता

आओ मिलकर नेह का दीप जलाएं

भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद

20/10/2024.

आओ मिलकर
नेह का दीप जलाएं।
एक गुजराती सुभाषिश है …
आव नहीं आदर नहीं,
नयन मां नहीं नेह,
ए घर कदापि न
जाइए,
कंचन वरसे मेह ,
अर्थात :
हम कोई घर में गयें वहां हमें,
आदर सत्कार, सम्मान नहीं मिलता है,
हमे देखकर घरके किसी
सदस्यों की आंखों में हमारे लिए नेह नहीं
छलकता,
उस घर में कभी भी नहीं जाना चाहिए,
चाहे उस घर में,
सोने का बरसात
बरसता हो!!!
मतलब खुब ही धनी हो।
जिस तरह हमें कोई मान नहीं
देता तो उस घर में, हमें जाना पसंद नहीं आता,
ठीक उसी तरह,
हमारे घर में भी,
कोई आये और
हम उसे सम्मान नहीं देंगे तो उसे भी अच्छा नहीं
लगेगा।

हमारे घर में हमें
पहचानते है वहीं
लोग ही आयेंगे ना।

हाँ हमें अनजान
लोगों से सावधान और
सतर्क भी रहना
चाहिए।
आजकल माहौल इतना अच्छा भी नहीं है कि हम
सभी पर भरोसा
कर सके!!
इसलिए हमें समजदार होना चाहिए।

फिरभी अपनेवालों के लिए हम,
अभी से तैयार हो जायेंगे,
आओ मिलकर
नेह का दीप जलाएं।

भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद

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