राज्य

संक्रांति दैदीप्यमान

डॉ कुमुद बाला मुखर्जी व्दारा लिखित कविता

संक्रांति दैदीप्यमान

कहीं पे लोहरी कहीं पे भोगी

कहीं पे पोंगल कहीं संक्रांति

अलग हैं नाम हर प्रदेश में

कहीं पे बिहु तो कहीं खिचड़ी

यही हमारे भारत वर्ष की शान

विविधता में एकता की पहचान

शुभ है रश्मिरथी का दर्पण

शुभ मकर राशि में परिवर्तन

सभी जीवों पर होता आवर्तन

है इसी प्रक्रिया में देव दर्शन

फलदायक तिल-गुड़ का पान

यही हमारे भारत वर्ष की शान

विविधता में एकता की पहचान

प्रथम अन्न दाता को समर्पित

गन्ने के रस- नारियल अर्पित

फूलों से वातावरण सुगंधित

हरियाली से ये धरती ऊर्जित

अंकुर-प्रांकुर की दिव्य मुस्कान

यही हमारे भारत वर्ष की शान

विविधता में एकता की पहचान

यह शस्य श्यामला-नीलाम्बरा

तरंगित ध्वनियों की ऋतम्भरा

विभिन्न पतंगों का व्योम मंचन

उमंगित पंछियों का नव नर्तन

प्राकृतिक छवि दिव्य दैदीप्यमान

यही हमारे भारत वर्ष की शान

विविधता में एकता की पहचान

नई फसल का विहँसता आवरण

नर्तक मयूर का मोहित जागरण

मधुरकंठी कोयल का स्वरागमन

वातावरण का नवल रूपांतरण

अद्भुत दृष्टि अद्भुत दृश्य निर्वाण

यही हमारे भारत वर्ष की शान

विविधता में एकता की पहचान

 

डॉ कुमुद बाला

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